बुधवार, 29 अप्रैल 2009

महासागर में रामकथा

हरिद्वार स्थित संस्था दिव्या प्रेम सेवा मिशन द्वारा आगामी जून माह में स्टार क्रूज़ विर्गो में प्रख्यात कथावाचक पूज्य विजय कौशल जी महराज के श्री मुख से "महासागर में श्री राम कथा " का आयोजन किया जा रहा है १९ से २८ जून के बीच होने वाले इस आयोजन में दिन सिंगापूर घोमाने तथा दिन स्टार क्रूज़ विर्गो में रहना निर्धारित है जहाँ नियमित राम कथा होगी, उल्लेखनीय है की इस आयोजन से संकलित शेष राशि को कुस्थ रोगियों एवं उनके स्वस्थ बच्चो के बीच काम करने वाली संस्था दिव्या प्रेम सेवा मिशन को दिया जाएगा


स्टार क्रूज़ एशियाई बेडेका सबसे बड़ा जहाज है,९८० केबिन युक्त यह जहाज जब अपनी पूरी छमता से भरा होता है तो इसके २७०० यात्री और १४०० क्रू मेंबर मिलकर ४००० यात्री एकसाथ यात्रा कर सकते है पानी में तैरते हुए सहर पर बच्चो बडो सभी के लिए मनोरंजन खेल कूद के लिए फुटबाल , बालीबाल,गोल्फ ग्राउंड, जिम स्पा , थिअटर,सिनेमा,शोपिंग गैलरी,सैलून ,लाइब्रेरी डिस्को,स्वीमिंग पुल तो है ही साथ सबसे ज्यादा आकर्षक लीडो थिअटर में हर दिन होने वाले म्युझिकल शो का भी प्रतिदिन प्रस्तुति करण होता है पूज्य महाराज जी द्वारा रामकथा का भी आयोजन इसी लीडो थिअटर में किया गया है जिसमे ८०० लोग एक साथ कथा सुन सकते है इस संपूर्ण यात्रा की विशेशता है की एक ऐसे संत का सान्निध्य जो केवल मानस मर्मघ्या ही नही है वरन जिन्होंने स्वयं अपने जीवन में मानस को जी रहे है .उनके मार्ग दर्शन में महासागर की गोद में विहार करते हुए अध्यात्म की गह्रइयो में दुबकी कगाने का एक अवसर है


यात्रा का आरम्भ १९ जून से होगा जिसमे महाराज जी के साथ सिंगापूर के मनोहारी drishyon के अवलोकन के साथ सेंतोसा ऐलैंड केबल कार,अंडरवाटर वर्ल्ड ,डोल्फिन लागून, सोंग ऑफ़ सी जैसे कार्यक्रम भी सम्मिलित है ,


२१तरीख को स्टार क्रूज़ में प्रवेश के साथ श्री राम कथा का भव्य आरम्भ होगा .इसी क्रम me यात्रा दिनांक २२ को फुकेट २३ को लंकावी २४ को शिन्गापुर २५ को पुओलाव रेदंग की यात्रा सहित बिभिन्न स्थानीय कार्यक्रम सिटी टूर जैसे कार्यक्रमों से व्यवस्थित है जिसमे यात्रियों को स्थानान्तार्ण देने की भी सुविधा है एस प्रकार यह यात्रा १९ जून से २९ जून तक चलेगी सम्पूर्ण यात्रा आधात्मिक यात्रा है एस लिए इसमे शाकाहारी भोजन की व्यवस्था रहेगी


यह पूरी यात्रा दिव्य प्रेम सेवा मिशन हरिद्वार के सहयोगार्थ आयोजित है , जो समाज के सबसे उपेछित वर्ग कुस्थ रिगियो के लिए १९९७ से पूज्य संत श्री की प्रेरणा से चंदिघात छेत्र में कार्यरत है, misson ने लगभग ५०० कुस्थ रोगियों तथा में रहने वाले garibo के लिए एक aadarsh hospital की sthapna की है....swasth mahilaoo के swavlamban के लिए ej hand made papar lee unit शुरू की है ,kust रोगियों के swasth बच्चो के किए vidyalaya भी chalati है,४५० bacho के shiksha hetu school तथा २५० बच्चो hetu aavaseeya परिसर भी बनाया है।


यात्रा में भाग लेने एवं अधिक jankaari के लिए मिशन की adhikarik वेबसाइट www.divyaprem.org पर और फोन एवं no. ०९८३७०८८९१० पर sampark कर सकते है.


बुधवार, 16 जुलाई 2008

मै सोचता हु.............

इस शहर की भीड़ में एक पहचान बनाने निकला हू,कही टुटा है एक तारा आसमान से मैं उसे चाँद बनाने निकला हू..... तो क्या हुआ जो जिंदगी हर कदम पर मारती है ठोकर,हर बार फिर संभलकर मैं उसे फिर एक अरमान बनाने निकला हू....... डूबता हुआ सूरज कहता है हर शाम मुझेसे की वो कल फिर आएगा ,मैं उसे कल के लिए एक आसमान बनाने निकला हू......... एक तारा टुटा है असमान मे मैं उसे चाँद बनाने निकला हू ............

कल हो न हो ......

आज एक बार सबसे मुस्करा के बात करो
बिताये हुये पलों को साथ साथ याद करो
क्या पता कल चेहरे को मुस्कुराना
और दिमाग को पुराने पल याद हो ना हो

आज एक बार फ़िर पुरानी बातो मे खो जाओ
आज एक बार फ़िर पुरानी यादो मे डूब जाओ
क्या पता कल ये बाते
और ये यादें हो ना हो

आज एक बार मन्दिर हो आओ
पुजा कर के प्रसाद भी चढाओ
क्या पता कल के कलयुग मे
भगवान पर लोगों की श्रद्धा हो ना हो

बारीश मे आज खुब भीगो
झुम झुम के बचपन की तरह नाचो
क्या पता बीते हुये बचपन की तरह
कल ये बारीश भी हो ना हो

आज हर काम खूब दिल लगा कर करो
उसे तय समय से पहले पुरा करो
क्या पता आज की तरह
कल बाजुओं मे ताकत हो ना हो

आज एक बार चैन की नीन्द सो जाओ
आज कोई अच्छा सा सपना भी देखो
क्या पता कल जिन्दगी मे चैन
और आखों मे कोई सपना हो ना हो

क्या पता
कल हो ना हो ....

गुरुवार, 20 मार्च 2008

गंगा का व्वयासयीकरण

आज हम वैघनिक उपलब्धियों एवम विकाश की चकाचौंध मी अपने मूल तत्त्व को भूल चुके हाई। उत्तर प्रदेश सरकार ने विकाश की दुहाई देते हुए , तिहरी बाँध मी कैद माँ गंगा के बाजारीकरण की योजना बना ली हाई उप सरकार का दावा हाई की नॉएडा से बलिया लगभग १ हजार किलो मीटर की गंगा एक्सप्रेस वे बनने के बाद प्रदेश के पूर्वी जिलो की तस्वीर बदल जायेगी परन्तु वही काशी हिंदू विशाव्विद्यालय द्वारा गंगा पर किए शोध के अनुसार इस परियोजना से न केवल गंगा का प्रदुषण बढेगा बल्कि गंगा बसीं की जलवायु पेर असर पड़ेगा तथा लगभग ५० लाख कुंतल अनाज की पैदावार कम होगी । रिपोर्ट मी कहा गया हई की एक्सप्रेस वे पेर चलने वाली गाडियों से लगातार कार्बन दाई ओक्सिदे , कार्बन मोनो ओक्सिद आदि जैसे नदी से निस्तारित होने वाली वाष्पीकरण की रफ़्तार को बढ़ा देगी जिससे जल मे ऑक्सिजन की मात्र घाट जायेगी , इसके अलावा एक्सप्रेस वे और गंगा के बीच की उपजाऊ जमीन गंगा का बसिन न रहकर बाढ़ खेत्र मे तब्दील हो जायेगी तथा हजारो एकड़ का गंगा उपजाऊ बसिन खेत्र नष्ट हो जाएगा और हम आने वाली पीढियों को गंगा की कहानी सुनते नजर आयेंगे । अभी भी समय हाई सँभालने का , अब तक हुए विनाश से सबक लेकर सादगी एवम संयम का जीवन अपनाकर तथा प्रकृति एवम मनुष्य के सम्बन्ध को पहचानकर ही मानव जाती इस स्वनिर्मित विनाश से बच सकती हाई और भविष्य मे उज्जवल भविष्य की सम्भावना साकार हो सकती हाई.

गुरुवार, 23 अगस्त 2007

दिव्य प्रेम सेवा मिशन के १० वर्ष..........

दिव्य प्रेम सेवा मिशन ने आपनी स्थापना के १० वर्ष पूरे केर लिए है। जनुअरी १९९७ को हरिद्वार के चंदिघात की एक झोपड़ी से शुरू हुआ कुष्ठ सेवा का यह संकल्प आज सौकरो बच्चो के साथ साथ समाज मे सेवा और साधना का वाहक बन रह है । ह्रदय मे करुना और मन मे संकल्प ही तो आधार था आशीष जीं का , और उसमे शामिल हुई समाज की संवेदना ,क्योकि उनका यह संकल्प अपने लिए नही वरन स्वार्थ की इस दुनिया से परे हट कर उस परमार्थ के लिए था , जिसमे सेवा ही साधना थी और यही साधना सम्बोधि तक पहुचने का मार्ग था।
दिव्य प्रेम सेवा मिशन ने समाज के सबसे घ्रिदित समझे जाने वाले, समाज से कट कर जीने वाले कुस्थ रोगियों की सेवा का व्रत लिया । हरिद्वार मे "सेवाकुंज" तथा "वन्देमत्रमकुंज" परिसर के माध्यम से कुस्था रोगियों की चिकित्सा तथा उनके २०० स्वस्थ बच्चो के बीच शिक्चा संस्कार के मध्यम से नवजीवन प्रदान कर उनमे जीवन के प्रति आशा और उल्लाश का संचार तो किया ही है साथ ही वे तथाकथित सभ्य समाज मे इनके प्रति कुंद हुई संवेदना को भी जगाने से नही चुके है जिसका परिणाम है जिन नौजवानों को उच्च्रिखाल और दिशाहीन कहा जाता है आज वही नौजवान विश्वविद्यालय से निकलकर कुस्थ रोगियों की झोपदियो मे सेवा रत है।
दिव्य प्रेम सेवा मिशन की १० वर्षो की यात्रा पेर मानवता के नाते इन उपेच्च्हित दीं हीन रोगियों एवम इनके परिवारों के प्रति हम आपनी संवेदना का दीप जलाए क्योकि यह लडाई केवल शारीरिक रुप से पीड़ित उन व्यक्तियों तक ही सीमित नही है अपितु उस मानसिक कोढ़ के भी खिलाफ है जो आज समाज मे चिन्तन के स्तर पेर पूरी तरह व्याप्त है............

बुधवार, 22 अगस्त 2007

स्वदेशी और पुरातनता.............

स्वदेशी की जब हम बात करते है तो उसकी जीवंत भावना रेलवे और कार से लौटकर पुराने ज़माने के रथ और bailgadhi को apanana नही है। जब हम राष्ट्रीय sikchha kee बात करते है तो भास्कर के khagolvighyan और गादित अथवा नालंदा वयस्था kee oor लौटना आवश्यक नही है। हमे स्वयम से जुडे और मुख्य मुद्दे से काम है, यहाँ प्रश्न आधुनिकता और पुरातनता के बीच का नही है बल्कि एक आयातित सभ्यता और भारतीय मानस और प्रकृति के बीच अंतर संबंध का है.यह संघर्ष वर्त्तमान और अतीत का नही है बल्कि वर्तमान और भविष्य के बीच की संभावनाओं का है। विदेशी भाषा, जीवन, विचार, और संस्कृति को जानकर उनका उपयोग करे उनसे सहायता प्राप्त करे , तथा आपने आसपास की दुनिया के साथ यही संबंध स्थापित कर सके क्योकि पश्चिम की वैघ्यानिक तार्किक, प्रगतिशील संस्कृत आब विघटन की प्रक्रिया मे है और इस छाड़ डूबी नाव पेर सवार होना हमारे लिए बेतुकापन होगा। पश्चिम के बुद्धिजीवी भी एक नयी आशा से भारत की ऊर देख रहे है, यदि हम आपने गौरवशाली आतीत और सामर्थ्य को त्याग कर यूरोप के विघत्न्शील और मृतप्राय ateet मे aapana vishwash बनाए rakhenge तो यह bade aascharya की बात होगी........आपके suvichar की praatichha रहेगी........................

सार्थकता ..........................

मै ऐसा महासूश करता हूँ की जीवन एक बहुत संवेदनशील वस्तु है। उसे कोई मजाक, खिलवाड़ या "ऐसे ही" करने वाले कार्यो मे कोई रूचि नही होती है,परंतु जन्म से ही समाज कोई दिशा कोई कार्यकरेम दे नही पाटा । जीवन को हम विभिन्न तरह के दिखावे भुलावे मे क़ैद करने का प्रयाश करते है और युवावस्था आते आते जीवन स्वतंत्र विचरण करना भूल जाता है। वह स्वयम आपनी ही क़ैद मे आ जाता है। ऐसी ऐसे निर्णय हो चुके होते है ऎसी मन्याताये पुष्ट हो जाती है, ऐसे विचार हावी हो जाते है, ऎसी समाज की एक परिकल्पना बन जाती है कि न्यायोचित कार्यक्रमों को करने मे स्वयम को सच्छाम नही पाता। आधिकतेर तो होश ही नही रहता कि क्या सही है क्या गलत? और अगर होश आ भी जाता तो उस मान्यता की तीव्रता ऎसी होती है कि ना चाहा हुआ भी हो जाता है व चाहा हुआ भी नही हो पाता । ऎसी स्तिथी मे आपने आदत को बदलने के लिए सजगता वा चिन्तन ही उपाय दिखते है। बारम्बार चिन्तन द्वारा बात की सच्चाई को परखते रहें वा आपने कार्यक्रेमो निर्णयों के प्रति सजग रहे। ऐसा लगत है कि इससे एक छात्पताहत पैदा होगी और कुछेक गहरी मान्यताओं को छोड़ बाकी आदत बदल जायेंगे । जितना जितना हम सार्थाक्ताओं की ओर ध्यान देंगे उतना उतना ही निरार्थाक्तायें कम हो जायेंगी सजग रहते हुए ही आपनी सार्थकता को पहचानना ही एकमात्र उपाय दीखता है ....................................... अगर इसमे आपको कोई आन्य अनुभव या विचार आएंगे तो हम उसका सम्मान करेंगे.......और वह परस्पर्तामे भी सहायक होंगे..........धन्यवाद